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Welcome to 'Gayatri Chintan,' a profound blog dedicated to sharing the timeless teachings of Guru Mahararaj Prem Shankar Jaitley with the world. Our mission is to illuminate the path of wisdom and spiritual growth through the wisdom imparted by Guru Mahararaj. Reach out to us on any of the addresses below.

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श्रद्धा-सुमन

योगाधिराज ब्रह्मलीन पूज्यपाद संत श्री प्रेमशंकर जी महाराज

(7जून 1925-11 अगस्त 2008 ई0 तक) ,

 

परम पूत्य अनन्तश्री विभूषित तत्त्ववेत्ता मंत्रविज्ञान एवं तंत्र विज्ञान के महाज्ञाता निष्काम कर्मयोगी, महासवितायोगी ब्रह्मलीन संत श्री प्रेमशंकर जी जेटली महाराज का अवतरण 7 जून 1925 ई0 को मुरादाबाद के एक शिवभक्त ब्राह्मण पंडित श्री भवानी शंकर जी जेटली के घर भगवान शिव के कृपा प्रसाद के रूप में हुआ। वे जन्म से ही अनेक सिद्धियों से युक्त थे। अनेक महापुरूषों, योगियों के सानिध्य कर लरभ प्राप्त कर वेदमूर्ति तपोनिष्ठ आचार्य पंडित श्रीराम शर्माजी से दीक्षा ग्रहण कर गायत्री मंत्र एवं महासविता योग की पराकाष्ठा पर पहुंचे। पूर्णत्व की प्राप्ति कर विश्व शांति एवं राष्ट्र की उन्नति में सदा तत्पर, लोक कल्याणकारी कार्यों को करते हुए 11 अगस्त 2008 को अपनी लीला का संवरण किया। म यह देखा जाता था कि परम पूज्य महाराजश्री से दीक्षा प्राप्त. करने पर साधकों के भीतर स्वतः दिव्य यौगिक क्रियाएँ स्फुरित होने लगती थी। आनके शिष्य दिव्य यौगिक क्रियाओं का साक्षात्कार पहले करते थे और बाद में उन क्रियाओं आदि के नाम जानते और इस प्रकार अल्प समय में ही योग की उच्चतर भूमियों में पहुँच जाते थे। सद्गुरू भगवान तत्त्वज्ञान एवं यौगिक क्रियाओं के माध्यम से आत्म बोध कराते थे। भक्तिमय एवं धर्मनिष्ठ जीवन को सभी के लिए अनिवार्य मानते थे। आपके शरीर छाड़ने के अनंतर भी आपकी कृपा से आपके भक्तों का आध्यात्मिक उत्थान हो रहा है।  परमपूज्य जेटली जी महाराज लोक कल्याणार्थ एक ही समय पर पाँच स्थानों पर पाँच शरीरों से काम कर लेते थे। ट्रेन, हॉस्पिटल का ऑपरेशन थियेटर, न्यायालय, समुद्र, आकाश अथवा किसी भीषण संकट में अपने भक्तों के कल्यार्थ उनके अथवा उनके स्वजनों के पुकारने पर तत्क्षण पहुँच जाते थे। अपने भक्तों जो कोमा में पहुंचे होते थे, को खींच लाते थे और सचेत कर देते थे। इस प्रकार के सैकड़ों विवरण ‘साधकों के अनुभव' नामक पुस्तक में प्रकाशित हुए I योगाधिराज परमपूज्य जेटली जी महाराज सांसारिक रूप से उलझे हुए प्राणियों से सकाम साधना करवाते थे। उनके आदेशानुसार की जाने वाली उपासना सें लाभ होता था, लाभ से आस्था बलवती होती थी। उसे क्रमशः अब दुनिया की घटनाओं में भगवती की लीला दृष्टिगत होने लगती थी। परिणामस्वरूप परमपूज्य महीराजश्री की कृपा से वह निष्काम कर्मयोगी बन जाता था। सकाम उपासना से निष्काम कर्मयोगी बना साधक उतरोत्तर अन्तःकरण को शुद्ध करता हुआ ध्यान की गहराई में उतरने लगता और ज्ञानयोग तथा भक्तियोग का पथिक बन जाता। 1

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परमपूज्य महाराजश्री सांसारिक आकर्षणों यश आदि से सदा सावधान रहे। वित्तैषणा, दारैषणा एवं लोकेषणा से सदा गचे रहे और अपने अनुयायियों को वैभव से सदा दूर रहने की शिक्षा अपने आचरण एवं व्यवहार से देते रहे। सद्गुरू भगवान आचार्य पंडित श्रीराम शर्माजी का स्मरण करते हुए उनके अमृत वचन उद्धृत करते और ऐसा करते समय उनके शरीर में रामांच उत्पन्न हो जाता, कभी कंठ अवरूद्ध होता तो कभी इन सभी के साथ अश्रुपात। यह पुस्तक गुरूकृपा एवं गुरूभक्ति की एक स्मारिका है  I योगमार्ग के साधकों एवं गुरूभक्तों के लिए यह बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

महासवितायोगी की अन्तर्यात्रा

आत्मकथा

श्रीगायत्री शक्तिपीठ, मैकनियर रोड, बरेली द्वारा प्रकाशित

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